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बीए सेमेस्टर-1 गृह विज्ञान

सरल प्रश्नोत्तर समूह

प्रकाशक : सरल प्रश्नोत्तर सीरीज प्रकाशित वर्ष : 2022
पृष्ठ :250
मुखपृष्ठ : पेपरबैक
पुस्तक क्रमांक : 2634
आईएसबीएन :0

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बीए सेमेस्टर-1 गृहविज्ञान

प्रश्न- खनिज तत्व क्या होते हैं? विभिन्न प्रकार के आवश्यक खनिज तत्वों के कार्यों तथा प्रभावों का विस्तारपूर्वक वर्णन कीजिए।

अथवा
कैल्शियम के शरीर में कार्य, प्राप्ति के स्रोत व कमी से होने वाले प्रभाव का वर्णन कीजिए।
सम्बन्धित लघु प्रश्न
1. आहार में कैल्शियम का महत्व बताइए।
2. कैल्शियम के क्या कार्य हैं? इसके साधन व दैनिक आवश्यकता लिखिए।
3. लौह तत्व की कमी के प्रभाव बताइये।
4. कैल्शियम की प्राप्ति के साधन बताइए?
5. शरीर में कैल्शियम के क्या कार्य हैं?
6. शरीर के लिए आवश्यक अल्पमात्रीय (ट्रेस) खनिजों का विवरण दीजिए।
7. आयोडीन की कमी से होने वाले प्रभाव क्या है?
अथवा
आयोडीन की कमी से होने वाले रोग लिखिये।
8. हमारे शरीर के लिए कैल्शियम तथा फॉस्फोरस क्यों महत्वपूर्ण है?
9. कैल्शियम की कमी व अधिकता का प्रभाव बताइये।

उत्तर-

कार्बोहाइड्रेट, वसा, प्रोटीन के अतिरिक्त एक और तत्व शरीर में उपस्थित रहता है, जिसे खनिज तत्व कहते हैं। यह तत्व शरीर में वृद्धि व निर्माण में सहायक होता है। वनस्पति अथवा जन्तु ऊतकों को जलाने पर जो भस्म अवशेष रहती है, यह वास्तव में खनिज ही है। हमारे शरीर के भार का 4% भाग खनिज तत्व से ही बना होता है। ये खनिज तत्व अकार्बनिक होते हैं अर्थात् इसमें कार्बन की उपस्थिति नहीं होती है।

विभिन्न खनिज तत्व

शरीर में कुल खनिज तत्वों की संख्या 24 होती है। ये सभी तत्व भोजन द्वारा शरीर में पहुँचते रहने चाहिए। ये खनिज तत्व निम्नलिखित हैं-

कैल्शियम, फास्फोरस, पोटेशियम, सल्फर, सोडियम, क्लोरीन, मैग्नीशियम, लोहा, मैग्नीज, ताँबा, आयोडीन, कोबाल्ट, जिंक, एल्यूमिनियम, आर्सेनिक, ब्रोमीन, फ्लोरीन, निकिल, क्रोमियम, कैडमियम, सेलेनियम, सिलिकॉन, बेनाडियम, मॉलिबिडनम आदि।

खनिज तत्वों के कार्य -

1. दाँतों व अस्थियों का निर्माण व सुदृढ़ बनाने का कार्य कैल्शियम, फास्फोरस तथा मैग्नीशियम के द्वारा होता है।

2. शरीर के कोमल ऊतकों के निर्माण में फास्फोरस तथा सल्फर सहायक होते हैं।

3. रक्त में उपस्थित हीमोग्लोबिन का निर्माण आयरन के द्वारा होता है, ताँबा भी इस क्रिया में सहायक होता है। कैल्शियम रक्त का संगठन बनाने में सहायक होता है।

नियामक कार्य यह निम्न प्रकार है -

1. शरीर के द्रवों में पाए जाने वाले खनिज तत्व सोडियम, पोटेशियम, क्लोरीन आदि शरीर में पानी का सन्तुलन बनाए रखते हैं।

2. खनिज तत्व अम्लीय व क्षारीय होने के कारण शरीर में अम्ल-क्षार का सन्तुलन बनाए रखते हैं। कैल्शियम, पोटेशियम, सोडियम व मैग्नीशियम क्षारीय तत्व होते हैं अन्य सभी तत्व अम्लीय प्रवृत्ति के होते हैं।

मेजर तत्व (Major Elements)

कैल्शियम (Calcium) - खनिज तत्वों में कैल्शियम की मात्रा सबसे अधिक होती है। कुछ खनिज तत्वों की आधी मात्रा अथवा शरीर के भार का 2% भाग कैल्शियम का बना होता है। एक प्रौढ़ व्यक्ति के शरीर में लगभग 1200 gm कैल्शियम होता है।

शरीर में कैल्शियम के कार्य

कैल्शियम के कार्य यद्यपि भोजन में खांद्य कैल्शियम की कमी होने से कोई विशेष कमी के लक्षण नहीं पाए जाते, तब भी वैज्ञानिकों ने कैल्शियम के विशिष्ट कार्यों का उल्लेख किया है जो कि शरीर में चयापचयी क्रियाओं में सहायक हैं।

1. हड्डियों का निर्माण भ्रूण के विकास के दौरान ही, भ्रूण में एक मजबूत परन्तु लचीला प्रोटीन मैट्रिक्स हड्डियों के निर्माण के लिए बनना शुरू हो जाता है। शुरू में सामान्य संरचना में यह परिपक्व हड्डी के समान होता है, परन्तु दृढ़ता तथा मजबूती में कमी पाई जाती है। जन्म के तुरन्त बाद मैट्रिक्स दृढ़ होने लगता है।

2. दाँतों का निर्माण हाइड्रॉक्सीएपेटाइट को जो हड्डियों के निर्माण में सहायक है, दाँतों के डेक्टिन तथा इनेमल का भी निर्माण करता है, परन्तु दाँतों में, इसके क्रिस्टल अधिक घने होते हैं तथा पानी की मात्रा कम होती है। इनेमल में पाया जाने वाला प्रोटीन किरेटिन तथा डेण्टीन में कोलेजन (Collagen) कहलाता है।

3. वृद्धि - यद्यपि वृद्धि पर कैल्शियम की कमी का प्रभाव ज्यादा नहीं पाया गया है तथापि परीक्षण द्वारा यह पता चला है कि कुछ व्यक्ति जो निरन्तर कम कैल्शियम वाले भोजन पर पाले जाते हैं, वह इन व्यक्तियों से जिनके भोजन में कैल्शियम पर्याप्त मात्रा में था, कद में छोटे होते हैं।

4. रक्त का जमना कैल्शियम रक्त जमने की प्रक्रिया में सहायक है। कोशिका के टूट-फूट होने पर (चोट इत्यादि लगाने पर) रक्त का आयनीकृत कैल्शियम रक्त प्लेटेनस को थ्रोम्बोप्लास्टिन (जोकि एक फास्फोलिपिड है) स्रावित करने के लिए उत्तेजित करता है। थ्रोम्बोप्लास्टिन, रक्त में ही उपस्थित प्रोथ्रोम्बिन को प्रोटीन में परिवर्तित कर देता है।

5. शरीर क्रियाओं में उत्प्रेरक का कार्य कोबलियन (विटामिन B12) का आँत नली से अवशोषण उपस्थित कैल्शियम पर निर्भर करता है। वसा पाचन में सहायक एन्जाइम प्रैन्क्रियाटिक लाइपेज, कैल्शियम द्वारा क्रियात्मक अवस्था में लाया जाता है।

6. संवेदना प्रेषण कैल्शियम के टूटने से एक पदार्थ एसीटाइलकोलीन का निर्माण होता है जो तंत्रिका संवेदनाओं को एक तंत्रिका कोशिका में दूसरे से पहुँचाने में आवश्यक है।

7. कैल्शिय मकोशिका भित्ति में फास्फोलिपिड लेसिथिन के साथ संयुक्त रूप में पाया जाता है।

8. माँसपेशी संकुचन का नियंत्रण माँस-पेशी संकुचन के सामान्य रूप से पूरा होने के लिए द्रव्य में संरचनात्मक रूप से, माँसपेशी संकुचन को नियंत्रित करने वाले तत्वों जैसे कैल्शियम का सन्तुलन में होना आवश्यक है।

9. स्ट्रांशियम का नियंत्रण  वातावरण में स्ट्रांशियम 90 की मात्रा रेडियोएक्टिव अभिक्रियाओं द्वारा बढती जाती है।

कैल्शियम प्राप्ति के साधन दूध व दूध से बने पदार्थ कैल्शियम के सर्वश्रेष्ठ स्रोत होते हैं। दूध के कैल्शियम का अवशोषण अन्य स्रोतों से प्राप्त कैल्शियम से अच्छा होता है, क्योंकि दूध में उपस्थित लेक्टोज शर्करा तथा लाइसिन अमीनो अम्ल कैल्शियम के अन्वेषण को बढ़ा देते हैं। दूध के अतिरिक्त कैल्शियम हरी पत्तेदार भाजी, तिल, सीताफल, गिरियों तथा रागी में भी अच्छी मात्रा में मिलता है। छोटी मछलियाँ जिन्हें साबुत ही खा लिया जाता है वे भी कैल्शियम की सम्पन्न स्रोत हैं। मटर, सेम, दालें, आलू, गोभी, अंजीर, शीरा आदि में भी कैल्शियम पाया जाता है। पान के पत्ते में चूना लगाने पर उसकी कैल्शियम की मात्रा बढ़ जाती है। यदि कम कैल्शियम वाला आहार लिया जाये तथा साथ में सूर्य का प्रकाश मिलता रहे तो कैल्शियम का अवशोषण शरीर में बढ़ जाता है। पाश्चात्य देशों में गेहूँ के आटे को कैल्शियम से फ्रॉट्रफाइ (Fortify) कर दिया जाता है।

कैल्शियम अवशोषण को प्रभावित करने वाले कारक कुछ कारक कैल्शियम के अवशोषण में सहायक होते हैं तथा कुछ पाचक। यह निम्न प्रकार से हैं-

कैल्शियम अवशोषण में सहायक कारक

1. विटामिन डी - विटामिन-डी की पर्याप्त मात्रा अवशोषण में सहायक है।

2. भोज्य पदार्थों की अम्लीयता कैल्शियम अम्ल में अधिक घुलनशील है। जब ये आँत नली में अवशोषित होता है, वहाँ क्षारीय माध्यम होता है। अतः यदि कोई भोज्य पदार्थ जोकि अम्लीय प्रकृति का हो, अमाशय से आँत में प्रवेश करे तो यह कैल्शियम अवशोषण में सहायक होते हैं तब तक, जब तक कि आँत भित्ति के एन्जाइम स्त्रावित न हो।

3. कैल्शियम / फास्फोरस का अनुपात बराबर ( 1:1) बराबर होने पर कैल्शियम अवशोषण बढ़ जाता है।

कैल्शियम अवशोषण में बाधक कारक

1. आक्जैलिक अम्ल यह कैल्शियम से संयुक्त होकर अघुलनशील पदार्थ, कैल्शियम आक्जेलेट बनाता है जो आँत द्वारा अवशोषित नहीं हो पाता।

2. फाइटिक अम्ल यह भी कैल्शियम से संयुक्त होकर अघुलनशील पदार्थ बनाता है।

3. आँत नली की क्षारीय माध्यम में अवशोषण कर घट जाती है।

4. भावनात्मक अस्थिरता।

5. खाद्य वसाओं का, मुख्य रूप से लम्बी श्रृंखला वाले वसीय अम्ल से निर्मित वसा का भोजन में उपस्थित होना।

कैल्शियम की कमी से होने वाले रोग

कैल्शियम की कम मात्रा लेने से अस्थियों व दाँतों में कैल्शियम जमने की क्रिया नहीं हो पाती है। कैल्शियम की तीव्र कमी फास्फोरस तथा विटामिन 'डी' की कमी होने पर देखी जा सकती है।-

कैल्शियम की कमी से होने वाली हानियाँ निम्नलिखित हैं-

(a) अस्थियों व दाँतों में कैल्सीफिकेशन की क्रिया अपूर्ण रह जाती है।

(b) बाल्यावस्था में कैल्शियम की कमी से रिकेटस रोग हो जाता है जिससे बच्चों की टाँगों की

हड्डियाँ टेढ़ी हो जाती हैं व शारीरिक विकास रुक जाता है।

(c) प्रौढ़ावस्था व वृद्धावस्था में लगातार कैल्शियम की कमी से ओस्टोमलेशिया व वृद्धावस्था में इसकी कमी से ओस्टोपोरीसिस नामक रोग हो जाता है।

(d) प्रौढ़ावस्था व वृद्धावस्था में लगातार कैल्शियम की कमी बने रहने से अस्थियों से कैल्शियम तत्व बाहर निकलते रहते हैं। इस क्रिया को डी- कैल्सीफिकेशन (De-calcification) कहते हैं।

कैल्शियम की अधिकता (Hypercalcemia)

कैल्शियम की अधिकता बच्चों व प्रौढ व्यक्तियों को ही हो सकती है। 5 से 8 महीने की अवस्था के बच्चे विशेष रूप से कैल्शियम की अधिकता से प्रभावित होते हैं। इस स्थिति में भूख कम हो जाती है, वमन होती है, कब्ज हो जाता है, माँसपेशियाँ ढीली हो जाती हैं तथा बच्चे के चेहरे का भाव बदल जाता है। रक्त में कैल्शियम की मात्रा बढ जाती है साथ ही रक्त में यूरिया, प्लाज्मा, कोलेस्ट्रॉल भी बढ़ जाते हैं। गुर्दों में कैल्शियम अधिक होने लगता है। कैल्शियम की अधिकता इन बच्चों में विशेष रूप से होती है जो विटामिन 'डी' की अधिक मात्रा लेते हैं। इससे कैल्शियम का अवशोषण बढ़ जाता है। इसके उपचार के लिए आहार में कैल्शियम व विटामिन 'डी' की कम मात्रा लेनी चाहिए।

कैल्शियम की दैनिक आवश्यकता विकसित देशों की अधिकतर जनसंख्या 300 से 500 मि. ग्राम कैल्शियम अपने आहार के द्वारा लेती है। चयापचय द्वारा देखा गया कि इतनी मात्रा लेने पर शरीर में कैल्शियम का सन्तुलन ठीक बना रहता है। विभिन्न संस्थाओं जैसे FAO, WHO, ICMR ने विभिन्न उम्र में कैल्शियम की आवश्यक मात्रा प्रस्तावित की है।

कैल्शियम का अवशोषण व चयापचय कैल्शियम का अवशोषण छोटी आँत के ऊपरी भाग में होता है। अवशोषित कैल्शियम की मात्रा शारीरिक आवश्यकता पर निर्भर करती है। वृद्धि की अवस्थाओं में जबकि कैल्शियम की आवश्यकता अधिक होती है, अवशोषण भी तेजी से होता है। सामान्य स्थिति में औसतन 50-40% भोजन का कैल्शियम अवशोषित हो जाता है।

फॉस्फोरस
(Phosphorus)

कैल्शियम के बाद खनिज तत्वों में फास्फोरस की मात्रा अधिकतम होती है। कुछ खनिज तत्वों का एक चौथाई भाग तथा शरीर के भार का 1% फास्फोरस से बना होता है। एक प्रौढ़ व्यक्ति के शरीर में लगभग 400 से 700mg फास्फोरस उपस्थित रहता है। शरीर में फास्फोरस का 80% भाग कैल्शियम के साथ मिलकर अस्थियों व दाँतों में उपस्थित रहता है, बचा हुआ 20% नाजुक ऊतकों व शरीर के द्रवों में उपस्थित रहता है।

फॉस्फोरस के कार्य

1. ऊर्जा बन्धकों का निर्माण (High Energy Bonds) फास्फेट, कार्बोहाइड्रेट, वसा तथा प्रोटीन्स के ऑक्सीकरण द्वारा प्राप्त ऊर्जा के मुक्त होने में सहायता करता है। ए. डी. पी. (एडीनोसिन डाइ फास्फेट) अणु पर एक और फास्फेट अणु जुड़कर ए. टी. पी. (एडीनोसिन ट्राई फास्फेट) का निर्माण कर ऊर्जा के एकत्रण में सहायता करते हैं।

2. पोषण तत्वों के अवशोषण तथा परिवहन को सरल करना - वसाएँ, फास्फोलिपिड के रूप में रक्त में परिवहन की जाती हैं। ग्लाइकोजन जब यकृत से या माँसपेशियों से ऊर्जा के रूप में प्रयुक्त होने के लिए मुक्त किया जाता है तब यह फास्फोरस युक्त ग्लूकोज यौगिक के रूप में होता है, जोकि फास्फोरस की आवश्यकता को दर्शाता है।

3. आवश्यक शारीरिक यौगिकों का भाग यह कई विटामिन के क्रियात्मक रूप में पाया जाता है- जैसे थायमिन पायरोफास्फेट (B1) क्योंकि अधिकतर विटामिन प्रोटीन होते हैं तथा इनमें फास्फोरस पाया जाता है। अतः फास्फोरस की आवश्यकता प्रत्यक्ष रूप से देखी जा सकती है।

फॉस्फोरस की दैनिक आवश्यकता फास्फोरस की आवश्यकता की मात्रा भोज्य पदार्थ पर निर्भर करती है, जैसे अनाज व दाल की फास्फोरस फाइटिक एसिड के रूप में होने के कारण पूर्ण अवशोषित नहीं हो पाती, जबकि दूध, अण्डा, माँस, मछली आदि की फास्फोरस पूर्ण रूप से अवशोषित हो जाती है।

फास्फोरस का अवशोषण तथा चयापचय फास्फोरस का अवशोषण छोटी आँत में अकार्बनिक फॉस्फेट की तरह होता है। फास्फोरस के कार्बनिक यौगिक जैसे फाइटिक एसिड, अवशोषण के पहले अकार्बनिक फॉस्फेट में बदल जाते हैं।

कमी के प्रभाव फास्फोरस अधिकतम खाद्य पदार्थों में उन्मुक्त रूप से पाया जाता है। अतः इसकी कमी के प्रभाव नहीं पाए जाते हैं। इसकी कमी उन व्यक्तियों में पाई जा सकती है जो Anaertacids का सेवन अधिक मात्रा में करते हैं क्योंकि यह फॉस्फोरस अवशोषण में बाधा पहुँचाते हैं। इसकी कमी से उपाचन लक्षण थकान, भूख न लगना तथा हड्डियों को खनिज लवण विहीनीकरण होने लगता है।

मैग्नीशियम के कार्य -

1. मैग्नीशियम का मुख्य कार्य शरीर के कुछ एन्जाइम को सक्रिय करना है जो कार्बोहाइड्रेट चयापचय से सम्बन्धित होते हैं।

2. मैग्नीशियम का कैल्शियम व फास्फोरस के चयापचय में भी महत्वपूर्ण कार्य होता है। मैग्नीशियम की न्यूनता का प्रभाव मैग्नीशियम की हीनता का प्रभाव विभिन्न प्रायोगिक ज्ञानवरों में देखा गया। इस तत्व की हीनता मनुष्यों में अधिक समय तक अतिसार रहने के कारण होती है।

मैग्नीशियम प्राप्ति के साधन मैग्नीशियम की उपस्थिति समस्त अनाजों, दालों, हरी पत्ती वाली सब्जियों, केला, खजूर आदि में होती है। दूध व अन्य पदार्थों में इसकी उपस्थिति बहुत कम होती है।

सोडियम (Sodium) - सोडियम साधारण नमक का यौगिक सोडियम क्लोराइड्स का एक तत्व है। एक प्रौढ़ व्यक्ति के शरीर में सोडियम की मात्रा लगभग 100 mg होती है। शरीर में सोडियम सभी बाह्य कोशिका द्रवों, जैसे प्लाज्मा, ऊतक द्रव तथा लसिका आदि में उपस्थित रहता है।

सोडियम के कार्य

1. सोडियम के अणु शरीर में क्लोराइड, बाईकार्बोनेट, फॉस्फेट तथा प्रोटीनेट के रूप में रहते हैं।

2. सोडियम शरीर में अम्ल व क्षार का सन्तुलन बनाये रखते हैं।

3. यह शरीर के ऊतक द्रवों तथा प्लाज्मा के रसाकर्षण दबाव को नियंत्रित रखता है, यह शरीर में पानी का सन्तुलन बनाए रखता है।

सोडियम का अवशोषण व चयापचय - सोडियम का अवशोषण छोटी आँत में बड़ी तीव्रता से होता है, पर इसकी मात्रा शरीर में बहुत कम रहती है। इसका अधिकतर भाग गुर्दे द्वारा सोडियम कलोराइड या सोडियम फॉस्फेट द्वारा उत्सर्जित हो जाता है।

दैनिक आवश्यकता 2 से 6 mg सोडियम प्रतिदिन हम अपने भोजन द्वारा लेते हैं जो कि पर्याप्त है। खाने का नमक सोडियम का प्रमुख साधन है। अन्य भोज्य पदार्थ जैसे अण्डा, माँस, छेना तथा कुछ अन्य सब्जियों में सोडियम की अल्प मात्रा उपस्थित रहती है।

हीनता से रोग - सोडियम की हीनता तीव्र अतिसार की स्थिति, वमन की स्थिति व बहुत अधिक पसीना निकल जाने की स्थिति में होती है। सोडियम की कमी से जी मिचलाना, पेट व टाँगों की माँसपेशियों में ऐंठन होना, थकावट महसूस करना तथा अम्ल व क्षार में असन्तुलन रहता है

सोडियम की अधिकता - सोडियम की अधिक मात्रा लेना स्वस्थ व्यक्ति के लिए हानिकारक नहीं होता है पर प्रोटीन की कमी भी होने पर एडीमा हो जाता है। अस्वस्थता की स्थिति में रक्त दबाव अधिक* हो जाता है तथा हृदय सम्बन्धी रोग हो जाते हैं।

क्लोरीन (Chlorine) - क्लोरीन कोशिका के अन्दर द्रव तथा कोशिका के बाह्य द्रव दोनों में उपस्थित रहता है। सोडियम क्लोराइड के रूप में यह कोशिका के बाह्य द्रवों में उपस्थित रहता है तथा पोटेशियम क्लोराइड के रूप में यह कोशिका के अन्दर के द्रवों में उपस्थित रहता है।

पोटेशियम (Potassium) पोटेशियम की उपस्थिति शरीर में कोशिकाओं के अन्दर के द्रवों में, माँसपेशियों में तथा लाल रक्त कणिकाओं में होती है। पोटेशियम भी अन्य खनिज तत्वों के साथ माँसपेशियों के संकुचन में, हृदय की धड़कन को नियंत्रित रखने में, नाड़ी ऊतकों की संवेदना शक्ति को बनाए रखने में तथ पानी के सन्तुलन में सहायक होता है।

सल्फर (Sulphur) शरीर की सभी कोशिकाओं में सल्फर की उपस्थिति दो अमीनो अम्ल ( सिस्टीन व मीथियोनिम) के तत्वों के रूप में होती है। सिस्टीन त्वचा, बाल व नाखून के लिए महत्वपूर्ण होता है।

ताँबा (Copper) - शरीर के सभी ऊतकों में बहुत अल्प मात्रा में ताँबे की उपस्थिति होती है। एक प्रौढ़ व्यक्ति के शरीर में लगभग 100 से 500mg ताँबे की उपस्थिति होती है। रक्त में उपस्थित ताँबा प्रोटीन के साथ मिलकर हीमोक्यूप्रिन ( Heamocuprin) के रूप में लाल रक्त कणिकाओं में रहता है। तथा सेरूलोप्लास्मिन (Cerupoplasmin) के रूप में प्लाज्मा में रहता है।

ताँबे के कार्य ताँबा शरीर में लोहे के अवशोषण तथा चयापचय में सहायता करता है। हीमोग्लोबिन के निर्माण में ताँबा विशेष रूप से सहायक होता है। इसके अतिरिक्त फैटी एसिड अवशोषण में भी सहायक होता है। एस्कार्बिक एसिड अथवा विटामिन 'सी' के ऑक्सीकरण की क्रिया में ताँबा सहायक होता है। यह डायरोसिन अमीनो एसिड को मेलेनिन रंग कण में ऑक्सीकृत कर देता है।

प्राप्ति के साधन यह चक्रत मांस, दाल, अनाज, चाय, कॉफी, कोको आदि में उपस्थित रहता है। दूध में भी इसकी थोड़ी मात्रा उपस्थित रहती है। माँ के दूध में गाय के दूध की अपेक्षा ज्यादा ताँबा रहता है।

आयोडीन के कार्य अब तक ज्ञात कार्यों के अनुसार, आयोडीन का मुख्य कार्य थॉयरॉक्सिन का तथा अन्य आयोडीन निर्मित यौगिकों का निर्माण करना है। साथ-साथ थॉयरॉक्सिन के अन्य महत्वपूर्ण कार्यों की तरह ही आयोडीन के मुख्य कार्य समान हैं।

1. यह शारीरिक वृद्धि तथा विकास में आवश्यक है। थायरॉक्सिन के कम मात्रा में स्रावित होने पर वृद्धि रुक जाती है तथा लम्बे समय तक कमी बने रहने पर मानसिक तथा शारीरिक वृद्धि पूर्णतः रुक जाती है।

2. थायरॉइड हारमोन कोशिका में ऑक्सीकरण की दर को नियंत्रित करता है। स्रवण अधिक होने पर ऊर्जा चयापचय की दर बढ जाती है।

प्राप्ति के साधन साधारण भोज्य पदार्थों में आयोडीन की उपस्थिति बहुत कम होती है। भोजन में उपस्थित आयोडीन की मात्रा उस स्थान की मिट्टी व पानी में उपस्थित आयोडीन की मात्रा पर निर्भर करती है। तराई वाले भागों की मिट्टी व पानी में आयोडीन बहुत कम होती है, अतः वहाँ के भोज्य पदार्थों में भी आयोडीन की उपस्थिति बहुत कम होती है।

आयोडीन की कमी से होने वाले रोग

घेंघा ( Goiter) - यह थायरॉइड ग्रन्थि के आकार में बढ़ने पर गले में सूजन के रूप में प्रतिलक्षित होता है। ग्रन्थि का आकार, आयोडीन की मात्रा पूरी करने के लिए बढ़ने लगता है जो थायरॉक्सिन निर्माण में आवश्यक है। जब आयोडीन की मात्रा सामान्य भार से 2% कम हो जाती है तब ग्रन्थि का आकार बढने लगता है। कोशिकाओं की संख्या तथा आकार दोनों बढते हैं।

क्रिटिनिज्म (Cretinism) यह सामान्यतः उन बच्चों में पाया जाता है जिनकी माता ने किशोरावस्था तथा गर्भावस्था में आहार में आयोडीन की कम मात्रा ग्रहण की हो तथा उसमें भी पाया जाता है जहाँ घेंघा की बीमारी पाई जाती है। यह बच्चे मानसिक रूप से असन्तुलित तथा शारीरिक कद में बौने रह जाते हैं। त्वचा मोटी तथा सूख जाती है तथा पेट का आकार बढ़ जाता है। चयापचय की दर घट जाती है, मांसपेशियाँ कमजोर व कोमल हो जाती हैं।

यदि जन्म के तुरन्त बाद उपचार किया जाए तो लक्षण ठीक हो सकते हैं लेकिन यदि पूर्व बाल्यावस्था तक उपचार नहीं किया जाए तो मानसिक तथा शारीरिक लक्षण स्थायी हो जाते हैं।

मिक्सीडिमा (Myzedema) वयस्क जिनमें थायरॉक्सिन की कमी उनके विकास काल में हो रही हो, मिक्सीडिमा से पीड़ित पाए जाते हैं। इनके बाल सूखे, कड़े, त्वचा सूखी व पीली पड़ जाती है। ठण्ड के प्रति सहनशक्ति कम हो जाती है। आवाज भारी व शरीर फूला-फूला हो जाता है। वे संवेदनशील रहित तथा निद्रालू हो जाते हैं। ये धीरे-धीरे कार्य करते हैं पर मानसिक विक्षिप्तता नहीं पाई जाती है।

दैनिक आवश्यकता एक प्रौढ़ व्यक्ति को आयोडीन की आवश्यकता लगभग 0.15 से 0.2 मिग्रा. होती है। यह मात्रा सामान्य रूप में सन्तुलित भोजन व पानी से मिलती रहती है। तराई वाले भागों में आयोडीन की पूर्ति के लिए आयोडाइज्ड नमक पर निर्भर रहना पड़ता है। वृद्धि की अवस्था में आयोडीन की आवश्यकता कुछ अधिक होती है।

अन्य खनिज तत्व

कोबाल्ट (Cobalt) - विटामिन 'बी 12 का निर्माण कोबाल्ट से होता है। कोबाल्ट शरीर में यकृत व गुर्दों में विशेष रूप से उपस्थित रहता है। मनुष्य में कोबाल्ट की कमी से कोई रोग ज्ञात नहीं हुआ है।

मैंगनीज (Manganese) - सन् 1961 में वैज्ञानिक हरले तथा एवरसन के मुर्गी पर किए गए प्रयोगों से मैंगनीज का सम्बन्ध वृद्धि, अस्थि विकास, प्रजनन क्रिया तथा केन्द्रीय नाड़ी संस्थान से देखा गया। यह साबुत अनाजों, दालों, माँस, मछली तथा पत्ते वाली सब्जियों में उपस्थित रहता है।

जस्ता (Zinc) जस्ता शरीर में अस्थियों, दाँतों तथा पक्वाशय ग्रन्थि में उपस्थित रहता है। रक्त तथा रक्त के प्लाज्मा या सीरम में भी इसकी उपस्थिति होती है।

जस्ता लाल रक्त कणिकाओं में उपस्थित कुछ एन्जाइम का एक घटक होता है। पक्वाशय ग्रन्थि (Pacreas) के नलिकाविहीन भाग आइलेट्स ऑफ लैंगरहेन्स (Islets of Langerhans) के हारमोन इन्सुलिन का निर्माण करने में जस्ता सहायक होता है। इसके अतिरिक्त शरीर के कई अन्य एन्जाइम के निर्माण में भी सहायक हैं।

लगभग 10-15mg जस्ता स्वस्थ प्रौढ़ व्यक्ति के द्वारा लिया जाता है। यह समुद्री भोजन, यकृत, अण्डे व खमीर में उपस्थित रहता है।

फ्लोरीन ( Florine) फ्लोरीन का ज्ञान दन्तक्षरण (Dental caries) रोग से हुआ। फ्लोरीन की उपस्थिति में बहुत कम मात्रा में आवश्यक होती है। यह विशेष रूप से दाँत व अस्थियों में उपस्थित रहता है। फ्लोरीन का प्रमुख स्रोत पीने का पानी है। कोमल पानी में फ्लोरीन की उपस्थिति नहीं होती है जबकि कठोर पानी में इसकी उपस्थिति बहुत अधिक होती है। चाय व समुद्री मछली में भी अच्छी मात्रा में फ्लोरीन उपस्थित रहता है। पानी में फ्लोरीन उपस्थित होने पर अन्य वनस्पति भोज्य पदार्थों में भी फ्लोरीन की उपस्थिति होती है।

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    अनुक्रम

  1. प्रश्न- पारम्परिक गृह विज्ञान और वर्तमान युग में इसकी प्रासंगिकता एवं भारतीय गृह वैज्ञानिकों के द्वारा दिये गये योगदान की व्याख्या कीजिए।
  2. प्रश्न- NIPCCD के बारे में आप क्या जानते हैं? इसके प्रमुख कार्यों का वर्णन कीजिए।
  3. प्रश्न- 'भारतीय आयुर्विज्ञान अनुसंधान परिषद' (I.C.M.R.) के विषय में विस्तृत रूप से बताइए।
  4. प्रश्न- केन्द्रीय आहार तकनीकी अनुसंधान परिषद (CFTRI) के विषय पर विस्तृत लेख लिखिए।
  5. प्रश्न- NIPCCD से आप समझते हैं? संक्षेप में बताइये।
  6. प्रश्न- केन्द्रीय खाद्य प्रौद्योगिक अनुसंधान संस्थान के विषय में आप क्या जानते हैं?
  7. प्रश्न- भारतीय आयुर्विज्ञान अनुसंधान परिषद (ICMR) पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।
  8. प्रश्न- कोशिका किसे कहते हैं? इसकी संरचना का सचित्र वर्णन कीजिए तथा जीवित कोशिकाओं के लक्षण, गुण, एवं कार्य भी बताइए।
  9. प्रश्न- कोशिकाओं के प्रकारों का वर्णन कीजिए।
  10. प्रश्न- प्लाज्मा झिल्ली की रचना, स्वभाव, जीवात्जनन एवं कार्यों का वर्णन कीजिए।
  11. प्रश्न- माइटोकॉण्ड्रिया कोशिका का 'पावर हाउस' कहलाता है। इस कथन की पुष्टि कीजिए।
  12. प्रश्न- केन्द्रक के विभिन्न घटकों के नाम बताइये। प्रत्येक के कार्य का भी वर्णन कीजिए।
  13. प्रश्न- केन्द्रक का महत्व समझाइये।
  14. प्रश्न- पाचन तन्त्र का सचित्र विस्तृत वर्णन कीजिए।
  15. प्रश्न- पाचन क्रिया में सहायक अंगों का वर्णन कीजिए तथा भोजन का अवशोषण किस प्रकार होता है?
  16. प्रश्न- पाचन तंत्र में पाए जाने वाले मुख्य पाचक रसों का संक्षिप्त परिचय दीजिए तथा पाचन क्रिया में इनकी भूमिका स्पष्ट कीजिए।
  17. प्रश्न- आमाशय में पाचन क्रिया, छोटी आँत में भोजन का पाचन, पित्त रस तथा अग्न्याशयिक रस और आँत रस की क्रियाविधि बताइए।
  18. प्रश्न- लार ग्रन्थियों के बारे में बताइए तथा ये किस-किस नाम से जानी जाती हैं?
  19. प्रश्न- पित्ताशय के बारे में लिखिए।
  20. प्रश्न- आँत रस की क्रियाविधि किस प्रकार होती है।
  21. प्रश्न- श्वसन क्रिया से आप क्या समझती हैं? श्वसन तन्त्र के अंग कौन-कौन से होते हैं तथा इसकी क्रियाविधि और महत्व भी बताइए।
  22. प्रश्न- श्वासोच्छ्वास क्या है? इसकी क्रियाविधि समझाइये। श्वसन प्रतिवर्ती क्रिया का संचालन कैसे होता है?
  23. प्रश्न- फेफड़ों की धारिता पर टिप्पणी लिखिए।
  24. प्रश्न- बाह्य श्वसन तथा अन्तःश्वसन पर टिप्पणी लिखिए।
  25. प्रश्न- मानव शरीर के लिए ऑक्सीजन का महत्व बताइए।
  26. प्रश्न- श्वास लेने तथा श्वसन में अन्तर बताइये।
  27. प्रश्न- हृदय की संरचना एवं कार्य का विस्तृत वर्णन कीजिए।
  28. प्रश्न- रक्त परिसंचरण शरीर में किस प्रकार होता है? उसकी उपयोगिता बताइए।
  29. प्रश्न- हृदय के स्नायु को शुद्ध रक्त कैसे मिलता है तथा यकृताभिसरण कैसे होता है?
  30. प्रश्न- धमनी तथा शिरा से आप क्या समझते हैं? धमनी तथा शिरा की रचना और कार्यों की तुलना कीजिए।
  31. प्रश्न- लसिका से आप क्या समझते हैं? लसिका के कार्यों का वर्णन कीजिए।
  32. प्रश्न- रक्त का जमना एक जटिल रासायनिक क्रिया है।' व्याख्या कीजिए।
  33. प्रश्न- रक्तचाप पर टिप्पणी लिखिए।
  34. प्रश्न- हृदय का नामांकित चित्र बनाइए।
  35. प्रश्न- किसी भी व्यक्ति को किसी भी व्यक्ति का रक्त क्यों नहीं चढ़ाया जा सकता?
  36. प्रश्न- लाल रक्त कणिकाओं तथा श्वेत रक्त कणिकाओं में अन्तर बताइए?
  37. प्रश्न- आहार से आप क्या समझते हैं? आहार व पोषण विज्ञान का अन्य विज्ञानों से सम्बन्ध बताइए।
  38. प्रश्न- निम्नलिखित पर टिप्पणी लिखिए। (i) चयापचय (ii) उपचारार्थ आहार।
  39. प्रश्न- "पोषण एवं स्वास्थ्य का आपस में पारस्परिक सम्बन्ध है।' इस कथन की पुष्टि कीजिए।
  40. प्रश्न- अभिशोषण तथा चयापचय को परिभाषित कीजिए।
  41. प्रश्न- शरीर पोषण में जल का अन्य पोषक तत्वों से कम महत्व नहीं है। इस कथन को स्पष्ट कीजिए।
  42. प्रश्न- भोजन की परिभाषा देते हुए इसके कार्य तथा वर्गीकरण बताइए।
  43. प्रश्न- भोजन के कार्यों की विस्तृत विवेचना करते हुए एक लेख लिखिए।
  44. प्रश्न- आमाशय में पाचन के चरण लिखिए।
  45. प्रश्न- मैक्रो एवं माइक्रो पोषण से आप क्या समझते हो तथा इनकी प्राप्ति स्रोत एवं कमी के प्रभाव क्या-क्या होते हैं?
  46. प्रश्न- आधारीय भोज्य समूहों की भोजन में क्या उपयोगिता है? सात वर्गीय भोज्य समूहों की विवेचना कीजिए।
  47. प्रश्न- “दूध सभी के लिए सम्पूर्ण आहार है।" समझाइए।
  48. प्रश्न- आहार में फलों व सब्जियों का महत्व बताइए। (क) मसाले (ख) तृण धान्य।
  49. प्रश्न- अण्डे की संरचना लिखिए।
  50. प्रश्न- पाचन, अभिशोषण व चयापचय में अन्तर स्पष्ट कीजिए।
  51. प्रश्न- आहार में दाल की उपयोगिता बताइए।
  52. प्रश्न- दूध में कौन से तत्व उपस्थित नहीं होते?
  53. प्रश्न- सोयाबीन का पौष्टिक मूल्य व आहार में इसका महत्व क्या है?
  54. प्रश्न- फलों से प्राप्त पौष्टिक तत्व व आहार में फलों का महत्व बताइए।
  55. प्रश्न- प्रोटीन की संरचना, संगठन बताइए तथा प्रोटीन का वर्गीकरण व उसका पाचन, अवशोषण व चयापचय का संक्षेप में वर्णन कीजिए।
  56. प्रश्न- प्रोटीन के कार्यों, साधनों एवं उसकी कमी से होने वाले रोगों की विवेचना कीजिए।
  57. प्रश्न- 'शरीर निर्माणक' पौष्टिक तत्व कौन-कौन से हैं? इनके प्राप्ति के स्रोत क्या हैं?
  58. प्रश्न- कार्बोहाइड्रेट का वर्गीकरण कीजिए एवं उनके कार्य बताइये।
  59. प्रश्न- रेशे युक्त आहार से आप क्या समझते हैं? इसके स्रोत व कार्य बताइये।
  60. प्रश्न- वसा का अर्थ बताइए तथा उसका वर्गीकरण समझाइए।
  61. प्रश्न- वसा की दैनिक आवश्यकता बताइए तथा इसकी कमी तथा अधिकता से होने वाली हानियों को बताइए।
  62. प्रश्न- विटामिन से क्या अभिप्राय है? विटामिन का सामान्य वर्गीकरण देते हुए प्रत्येक का विस्तारपूर्वक वर्णन कीजिए।
  63. प्रश्न- वसा में घुलनशील विटामिन क्या होते हैं? आहार में विटामिन 'ए' कार्य, स्रोत तथा कमी से होने वाले रोगों का उल्लेख कीजिये।
  64. प्रश्न- खनिज तत्व क्या होते हैं? विभिन्न प्रकार के आवश्यक खनिज तत्वों के कार्यों तथा प्रभावों का विस्तारपूर्वक वर्णन कीजिए।
  65. प्रश्न- शरीर में लौह लवण की उपस्थिति, स्रोत, दैनिक आवश्यकता, कार्य, न्यूनता के प्रभाव तथा इसके अवशोषण एवं चयापचय का वर्णन कीजिए।
  66. प्रश्न- प्रोटीन की आवश्यकता को प्रभावित करने वाले कारक कौन-कौन से हैं?
  67. प्रश्न- क्वाशियोरकर कुपोषण के लक्षण बताइए।
  68. प्रश्न- भारतवासियों के भोजन में प्रोटीन की कमी के कारणों को संक्षेप में बताइए।
  69. प्रश्न- प्रोटीन हीनता के कारण बताइए।
  70. प्रश्न- क्वाशियोरकर तथा मेरेस्मस के लक्षण बताइए।
  71. प्रश्न- प्रोटीन के कार्यों का विस्तृत वर्णन कीजिए।
  72. प्रश्न- भोजन में अनाज के साथ दाल को सम्मिलित करने से प्रोटीन का पोषक मूल्य बढ़ जाता है।-कारण बताइये।
  73. प्रश्न- शरीर में प्रोटीन की आवश्यकता और कार्य लिखिए।
  74. प्रश्न- कार्बोहाइड्रेट्स के स्रोत बताइये।
  75. प्रश्न- कार्बोहाइड्रेट्स का वर्गीकरण कीजिए (केवल चार्ट द्वारा)।
  76. प्रश्न- यौगिक लिपिड के बारे में अतिसंक्षेप में बताइए।
  77. प्रश्न- आवश्यक वसीय अम्लों के बारे में बताइए।
  78. प्रश्न- किन्हीं दो वसा में घुलनशील विटामिन्स के रासायनिक नाम बताइये।
  79. प्रश्न बेरी-बेरी रोग का कारण, लक्षण एवं उपचार बताइये।
  80. प्रश्न- विटामिन (K) के के कार्य एवं प्राप्ति के साधन बताइये।
  81. प्रश्न- विटामिन K की कमी से होने वाले रोगों का वर्णन कीजिए।
  82. प्रश्न- एनीमिया के प्रकारों को बताइए।
  83. प्रश्न- आयोडीन के बारे में अति संक्षेप में बताइए।
  84. प्रश्न- आयोडीन के कार्य अति संक्षेप में बताइए।
  85. प्रश्न- आयोडीन की कमी से होने वाला रोग घेंघा के बारे में बताइए।
  86. प्रश्न- खनिज क्या होते हैं? मेजर तत्व और ट्रेस खनिज तत्व में अन्तर बताइए।
  87. प्रश्न- लौह तत्व के कोई चार स्रोत बताइये।
  88. प्रश्न- कैल्शियम के कोई दो अच्छे स्रोत बताइये।
  89. प्रश्न- भोजन पकाना क्यों आवश्यक है? भोजन पकाने की विभिन्न विधियों का वर्णन करिए।
  90. प्रश्न- भोजन पकाने की विभिन्न विधियाँ पौष्टिक तत्वों की मात्रा को किस प्रकार प्रभावित करती हैं? विस्तार से बताइए।
  91. प्रश्न- “भाप द्वारा पकाया भोजन सबसे उत्तम होता है।" इस कथन की पुष्टि कीजिए।
  92. प्रश्न- भोजन विषाक्तता पर टिप्पणी लिखिए।
  93. प्रश्न- भूनना व बेकिंग में अन्तर स्पष्ट कीजिए।
  94. प्रश्न- खाद्य पदार्थों में मिलावट किन कारणों से की जाती है? मिलावट किस प्रकार की जाती है?
  95. प्रश्न- मानव विकास को परिभाषित करते हुए इसकी उपयोगिता स्पष्ट करो।
  96. प्रश्न- मानव विकास के अध्ययन के महत्व की विस्तारपूर्वक चर्चा कीजिए।
  97. प्रश्न- वंशानुक्रम से आप क्या समझते है। वंशानुक्रम का मानवं विकास पर क्या प्रभाव पड़ता है?
  98. प्रश्न . वातावरण से क्या तात्पर्य है? विभिन्न प्रकार के वातावरण का मानव विकास पर पड़ने वाले प्रभावों की चर्चा कीजिए।
  99. प्रश्न . विकास एवं वृद्धि से आप क्या समझते हैं? विकास में होने वाले प्रमुख परिवर्तन कौन-कौन से हैं?
  100. प्रश्न- विकास के प्रमुख नियमों के बारे में विस्तार पूर्वक चर्चा कीजिए।
  101. प्रश्न- वृद्धि एवं विकास को प्रभावित करने वाले प्रमुख कारकों का वर्णन कीजिए।
  102. प्रश्न- बाल विकास के अध्ययन की परिभाषा तथा आवश्यकता बताइये।
  103. प्रश्न- पूर्व-बाल्यावस्था में बालकों के शारीरिक विकास से आप क्या समझते हैं?
  104. प्रश्न- पूर्व-बाल्या अवस्था में क्रियात्मक विकास से आप क्या समझते हैं?
  105. प्रश्न- मानव विकास को समझने में शिक्षा की भूमिका बताओ।
  106. प्रश्न- बाल मनोविज्ञान एवं मानव विकास में क्या अन्तर है?
  107. प्रश्न- वृद्धि एवं विकास में क्या अन्तर है?
  108. प्रश्न- गर्भकालीन विकास की विभिन्न अवस्थाएँ कौन-सी हैं? समझाइए।
  109. प्रश्न- गर्भकालीन विकास को प्रभावित करने वाले विभिन्न कारक कौन से है। विस्तार में समझाइए |
  110. प्रश्न- गर्भाधान तथा निषेचन की प्रक्रिया को स्पष्ट करते हुए भ्रूण विकास की प्रमुख अवस्थाओं का वर्णन कीजिए।.
  111. प्रश्न- गर्भावस्था के प्रमुख लक्षणों का उल्लेख कीजिए।
  112. प्रश्न- प्रसव कितने प्रकार के होते हैं?
  113. प्रश्न- विकासात्मक अवस्थाओं से क्या आशर्य है? हरलॉक द्वारा दी गयी विकासात्मक अवस्थाओं की सूची बना कर उन्हें समझाइए।
  114. प्रश्न- "गर्भकालीन टॉक्सीमिया" को समझाइए।
  115. प्रश्न- विभिन्न प्रसव प्रक्रियाएँ कौन-सी हैं? किसी एक का वर्णन कीएिज।
  116. प्रश्न- आर. एच. तत्व को समझाइये।
  117. प्रश्न- विकासोचित कार्य का अर्थ बताइये। संक्षिप्त में 0-2 वर्ष के बच्चों के विकासोचित कार्य के बारे में बताइये।
  118. प्रश्न- नवजात शिशु की प्रमुख विशेषताओं का वर्णन करो।
  119. प्रश्न- नवजात शिशु की पूर्व अन्तर्क्रिया और संवेदी अनुक्रियाओं का वर्णन कीजिए। वह अपने वाह्य वातावरण से अनुकूलन कैसे स्थापित करता है? समझाइए।
  120. प्रश्न- क्रियात्मक विकास से आप क्या समझते है? क्रियात्मक विकास का महत्व बताइये |
  121. प्रश्न- शैशवावस्था तथा स्कूल पूर्व बालकों के शारीरिक एवं क्रियात्मक विकास से आपक्या समझते हैं?
  122. प्रश्न- शैशवावस्था एवं स्कूल पूर्व बालकों के सामाजिक विकास से आप क्यसमझते हैं?
  123. प्रश्न- शैशवावस्थ एवं स्कूल पूर्व बालकों के संवेगात्मक विकास के सन्दर्भ में अध्ययन प्रस्तुत कीजिए।
  124. प्रश्न- शैशवावस्था क्या है?
  125. प्रश्न- शैशवावस्था में संवेगात्मक विकास क्या है?
  126. प्रश्न- शैशवावस्था की विशेषताएं क्या हैं?
  127. प्रश्न- शैशवावस्था में शिशु की शिक्षा के स्वरूप पर टिप्पणी लिखो।
  128. प्रश्न- शिशुकाल में शारीरिक विकास किस प्रकार होता है।
  129. प्रश्न- शैशवावस्था में मानसिक विकास कैसे होता है?
  130. प्रश्न- शैशवावस्था में गत्यात्मक विकास क्या है?
  131. प्रश्न- 1-2 वर्ष के बालकों के संज्ञानात्मक विकास के बारे में लिखिए।
  132. प्रश्न- बालक के भाषा विकास पर टिप्पणी लिखिए।
  133. प्रश्न- संवेग क्या है? बालकों के संवेगों का महत्व बताइये।
  134. प्रश्न- बालकों के संवेगों की विशेषताएँ बताइये।
  135. प्रश्न- बालकों के संवेगात्मक व्यवहार को प्रभावित करने वाले कारक कौन-से हैं समझाइये |
  136. प्रश्न- संज्ञानात्मक विकास से आप क्या समझते है। पियाजे के संज्ञानात्मक विकासात्मक सिद्धान्त को समझाइये।
  137. प्रश्न- संज्ञानात्मक विकास की प्रमुख विशेषताओं का वर्णन कीजिए।
  138. प्रश्न- दो से छ: वर्ष के बच्चों का शारीरिक व माँसपेशियों का विकास किस प्रकार होता है? समझाइये।
  139. प्रश्न- व्यक्तित्व विकास से आपका क्या तात्पर्य है? बच्चे के व्यक्तित्व विकास को प्रभावित करने वाले कारकों को समझाइए।
  140. प्रश्न- भाषा पूर्व अभिव्यक्ति के प्रकार बताइये।
  141. प्रश्न- बाल्यावस्था क्या है?
  142. प्रश्न- बाल्यावस्था की विशेषताएं बताइयें।
  143. प्रश्न- पूर्व बाल्यावस्था में खेलों के प्रकार बताइए।
  144. प्रश्न- पूर्व बाल्यावस्था में बच्चे अपने क्रोध का प्रदर्शन किस प्रकार करते हैं?

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